Friday 4 January 2013

Sky High Expectations from Jyotish


     मेरे कुछ साथियोँ का कहना है कि मेरे प्रिय विषय कम्प्यूटर ,इंजीनियरिंग , तकनीकी , प्रबंधन और क़ानून भी हैं, फिर मैंने इंजीनियर के व्यवसाय को छोड़कर ज्योतिष को ही क्यों चुना ? इसका उत्तर प्रस्तुत लेख में है 

  आज शिक्षा के  सभी क्षेत्रों  में नई पीढ़ी के लाखों व्यक्ति हरेक स्तर पर देश व विदेश में पढ़ व शोध कर रहे हैं। लेकिन ज्योतिष 17वीं शताब्दी में जहां रुका था , आज भी वहीं रुका है,  जबकि हमारे देश में ज्योतिष से अच्छी रिसर्च की परम्परा किसी शास्त्र के पास नहीं थी।

17वीं शताब्दी में अंग्रेजो के आने तक , भारतवर्ष का सबसे बड़ा निर्यात ज्ञान व विज्ञान और उसमें भी सबसे ज्यादा  सिर्फ ज्योतिष ही था , जिसकी पूरी दुनिया दीवानी थी। अरब देशो में इस्लाम धर्म का चलन होने के बावजूद , भारत में अरब से हज़ारो छात्र सिर्फ ज्योतिष सीखने ही आते थे। इस विज्ञान से प्रभावित होकर मुग़ल बादशाहों ने अपने राजकुमारों को संस्कृत व ज्योतिष  की शिक्षा भी दिलवाई ,जिनमे दाराशिकोह का नाम उनके संस्कृत ज्ञान के लिए  प्रसिद्ध  है। 

केरल  से सीखा हुआ प्रश्न ज्योतिष शास्त्र अरब देशों से होता हुआ ताजिकिस्तान पहुंचा .उत्तर भारत में हम तो उसे भूल ही गए थे पर जब हमने मुग़ल सेनापतियो को युद्ध में इस शास्त्र को प्रयोग करते देखा तो हमने उसे पुन: सीखा और उसे ताजिक शास्त्र का नाम दिया। इस शास्त्र में ग्रहों  के योगों  के नाम आज भी ताजिक भाषा में हैं और ताजिक शास्त्र का प्रयोग वर्षफल निकालने में आज भी  होता है।

प्राचीन भारत में ज्योतिष  इसी लिए समृद्ध था क्योंकि  उस समय का सबसे मेधावी छात्र ज्योतिष ही पढ़ता था .नालंदा और तक्षशिला में प्रवेश परीक्षा  देने  भारत के प्रदेशों से ही नहीं अपितु अरब देशो से भी लोग वैसे ही आते थे जैसे अब GRE TOEFL भारत के छात्र देते  हैं .

  इन विश्वविद्यालयों  से शिक्षा प्राप्त ज्योतिषियों  को राजाओं व बादशाहों के दरबार में जीवन पर्यन्त सम्मानजनक जीविका की गारंटी थी। ऐसे विद्वानों   द्वारा ही  ज्योतिष पर नित नए ग्रन्थ लिखने, शास्त्रार्थ करने से ज्योतिष शास्त्र ने उत्तरोतर प्रगति की .

जरा सोचिये यदि आज  सिर्फ़ 17वीं सदी तक के विज्ञान का ही प्रयोग किया जाए तो हमारी दुनिया कैसी होगी ? विज्ञान से हमें नित नये चमत्कार इसलिए मिल रहे हैं क्यों कि उसमें खरबों  डालर का निवेश हर साल दुनिया भर में किया जाता है। ज्योतिष में अगर उसका 0.01 % प्रतिशत निवेश ही कर दिया जाए तो विज्ञान से 100 गुना फल तो मिल ही सकता  है बल्कि समाज व पर्यावरण का संतुलन भी संभव हो सकता है।

अफ़सोस की बात है तो यह है कि आज इस शास्त्र से जीविका चलाने वाले 17वीं शताब्दी तक किये गए शोध से ही काम चला रहे हैं .पिछले साठ पैसठ वर्षो में ज्योतिष का ठेका सरकार ने संस्कृत विश्वविद्यालयों  को देकर अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ ली है। इन विश्वविद्यालयो के शिक्षको के लिए यह नौकरी पहले दिन से ही पेंशन की तरह है। कई जगह बिहार में कुछ विद्यालयों में संस्कृत शिक्षकों  की संख्या छात्रों  से ज्यादा है ,यह मैंने खुद देखा। 

    दूसरा कारण यह है कि आज किसी छात्र को मेधावी तभी माना जाता है जब वह पहले इंजीनियरिंग , तकनीकी , प्रबंधन आदि व्यावसायिक कोर्स पढ़े , बाद में भले ही वह आईएस,आईपीएस बने या अखिलेश यादव , नीतीश कुमार ,चेतन भगत , राम गोपाल वर्मा ,हर्षा भोगले , श्रीकांत की तरह अन्य व्यवसायों में झंडे गाड़े। 

   तो संस्कृत व ज्योतिष में  शुरू से मेधावी छात्र आते ही नहीं और जो आ जाते हैं ,उन्हें मेधावी शिक्षक न मिलने से वे तोता रटंत बन कर निकलते हैं और उन्हें कोई मेधावी मानता नहीं।

ऐसे में मुझे आज के मेधावी तकनीकी व प्रबंधन के स्नातक जो  उच्च पदों  पर सुशोभित हैं  उनकी बुद्धि पर तरस आता है, जब वे सबके सामने ज्योतिष की बुराई करते मिलते हैं। और व्यक्तिगत संकट के समय यही लोग घटिया से घटिया ज्योतिषी की शरण में जाकर लाल किताब के टोने टोटके न सिर्फ करते हैं बल्कि टीवी चैनेल पर इनके प्रोग्राम भी पैसे के चक्कर में चलाते हैं। बाद में ज्योतिषी की भविष्यवाणी गलत होने की जोर जोर से चर्चा भी करते हैं।  कोई इनसे यह नहीं पूछता है कि आप वहां गए क्यों थे ? 

अब अगर कोई भी गाय या भैंस पालेगा ही नहीं तो शुद्ध दूध की उम्मीद रखना बेवकूफी ही है। अगर आपको स्वर्ण की पहचान ही नहीं है तो आपको कोई कुछ भी पकड़ा कर चला जाएगा।
 इतने काबिल हिन्दी चैनलो के ज्ञानी पत्रकार हर साल दो बार पड़ने वाले सूर्य व् चन्द्र ग्रहण के समय टी आर पी बढाने के लिए ज्योतिष के अक्षम या सक्षम होने पर बहस आयोजित करते हैं। गलती से इन वादविवाद में यदि श्री के एन राव जैसे ज्योतिषी आ जाते हैं तो उन्हें बोलने नहीं दिया जाता है और बहस को ग्रहण समाप्त होते ही बिना किसी निष्कर्ष पर पहुंचे ही समाप्त कर दिया जाता है। अंग्रेजी टीवी चैनलों  के लिए तो यह कोई विषय ही नहीं है।

लेकिन इनमें से एक भी पत्रकार को कभी भी यह नहीं लगा  कि चलो मैं ही एक पत्रकार के नजरिये से ज्योतिष पढूं और फिर सबको अपना अनुभव बताऊं और चैनल पर बुलाए गए ज्योतिषियों  से उच्च स्तरीय सवाल पूछूं  ।

 जब हम ज्योतिष को कुछ भी देने को तैयार नहीं हैं तो फिर ज्योतिष से इतनी उम्मीदें क्यों  ?याद रखिये किसी भी विज्ञान को हमारी जरूरत नहीं है , हमें अपने भले के लिए सभी तरह के विज्ञान और शास्त्र की जरूरत है। जबतक राव साहब की तरह बड़ी संख्या में अन्य व्यवसाय में पारंगत व्यक्ति ज्योतिष को सीखकर उसमें कुछ नया नहीं जोड़ेंगे , तब तक आपको 17वीं सदी के आउट ऑफ़ डेट ज्योतिष से ही काम चलाना पडेगा।

1 comment:

  1. Nothing is in the hand of human. Each and every is controlled by god

    ReplyDelete