Thursday 29 August 2013

Shani Management Workshop Details



   मेरी वेबसाईट http://ycshukla.com की शुरुआत में मैंने यह स्पष्ट किया था कि मेरा मूल उद्देश्य ज्योतिष को कारपोरेट कम्पनियों और विभिन्न व्यवसायों में लगे लोगों तक पहुंचाना है , जिससे लोग इसका प्रयोग अपनी रूटीन डिसीजन मेकिंग में कर सकें। 
 

अपनी बात रखने के पहले मैं अपना एक अनुभव आपसे बांटना चाहूंगा । अक्सर बड़ी कम्पनियां अपने एक्सीक्यूटिव या प्रबंधकों को बड़ी जिम्मेदारी या प्रमोशन देने के पहले कुछ मैनेजमेंट प्रोग्राम में भेजती रहती हैं। मैंने खुद ऐसे दो प्रोग्राम में सन 2005 और 2011 में भाग लिया था। 2011 वाले प्रोग्राम का नाम Transformational Management Program था और यह सप्ताह भर का था और प्रोग्राम International Management Institute, Katwaria Sarai , New Delhi के द्वारा आयोजित था।

प्रोग्राम के आरम्भ में कोर्स डाइरेक्टर ने सभी प्रतिभागियों से यह पूछा कि वे इस प्रोग्राम से क्या उम्मीद रखते हैं। उस वक्त मैंने कहा था कि प्रोग्राम प्रतिभागियों से पूछ कर नहीं हो रहा है , फिर भी नाम के आधार पर मेरी उम्मीद है कि प्रशिक्षण के बाद हर प्रबंधक Transformed हो जाना चाहिए. मैंने फिर TRANSFORM शब्द को स्पष्ट किया। यह शब्द ऐसे परिवर्तनों के लिए प्रयोग किया जाता है जो किसी भी वस्तु या व्यक्ति को सिरे से इतना बदल दें कि अशिक्षित व्यक्ति भी उस परिवर्तन को महसूस कर सके।

इसका सबसे अच्छा उदाहरण बिजली वाला ट्रांसफार्मर है। 11000 वोल्ट से 440 वोल्ट का परिवर्तन मामूली परिवर्तन नहीं है और हर कोई इस परिवर्तन को समझ और महसूस कर सकता है। पानी का बर्फ या भाप में परिवर्तन भी इसका उदाहरण है। लेकिन एक आदमी इतना आसानी से ट्रान्सफार्म नहीं होता है, जब तक उसके मन मस्तिष्क में घुस कर , बरसों के जमे हुए कूड़ा करकट को साफ़ कर सकारात्मक विचार न डाले जाएं , तब तक उसका ट्रान्सफार्म होना असंभव है। 
 

स्वामी रामकृष्णा परमहंस से मिलने के बाद नरेन्द्र का स्वामी विवेकानंद बनना , राजकुमार सिद्धार्थ का भगवान् बुद्ध बनना और सम्राट अशोक का ह्रदय परिवर्तन ऐसे ट्रांसफॉर्मेशन के उदाहरण हैं।

जहां तक मेरी जानकारी है , ऐसा कोई प्रबंधन संस्थान भारत में नहीं है जो कुछ दिनों के प्रशिक्षण से आपको ट्रांसफोर्म कर दे। और मेरा उद्देश्य इसी लक्ष्य को प्राप्त करना है।

इसके लिए मैंने एक दिन के वर्कशॉप की रूपरेखा तैयार की है। इस वर्कशॉप का नाम मैंने शनि प्रबन्धन वर्कशॉप रखा है और मैंने इसके लिए एक कम्पनी आरम्भ की है जिसका नाम शनि लर्निंग सिस्टम्स है ।

शनि हमारे सोलर सिस्टम का सबसे बाहरी, दिखाई देने वाला ग्रह है जो सूर्य की एक परिक्रमा 30 साल में पूरी करता है। इस प्रकार हरेक राशि में औसतन शनि ढाई साल रहता है. हजारों साल के आंकड़ों से ज्योतिषियों ने पाया कि शनि का ढाई साल बाद राशि बदलना बहुत सारे परिवर्तनों की सूचना लेकर आता है. और यह ढाई साल तक सीधी सडक पर चलने के बाद एक बड़े मोड़ या मौसम के बदलाव जैसा होता है। 
 

हममें से ज्यादातर लोग इन बदलावों के बारे में जानकारी नहीं रखते हैं जिसकी वजह से हम अपनी जिन्दगी में, जैसे मौसम की जानकारी होने से अपने खानपान या रहन सहन में बदलाव ला कर अपने को सुरक्षित रख लेते हैं , वैसे ही यदि शनि राशि परिवर्तन के हिसाब से हम अपनी सोच को बदल सकें तो उस दौरान हम उसके प्रकोप से आसानी से बच सकते हैं।

मैंने अपने 15 साल के ज्योतिषीय रिसर्च व 24 साल के कारपोरेट अनुभव से यह पाया कि हमारे पूरे जीवन काल के बड़े परिवर्तनों में शनि का हिस्सा 40 प्रतिशत तक है , जबकि व्यवसाय से जुड़े 80 प्रतिशत बदलाव शनि के नियन्त्रण में ही हैं।

अत: अगर आप शनि को समझ लें तो व्यवसाय को 80 प्रतिशत समझना आपके लिए संभव हो जाएगा और अगर व्यवसाय की चाभी आपके हाथ लग जाए तो आपकी जिन्दगी में 40 प्रतिशत सुधार होना तय है। और यही सुधार आपको वास्तविक रूप से ट्रान्सफार्म करेगा क्यूंकि यह बदलाव अन्दर से होगा , किसी बॉस के डर या किसी लालच से बाहरी परिवर्तन जैसा नहीं होगा, जो थोड़े दिन बाद गायब हो जाता है ।

मैंने शनि मैनेजमेंट वर्कशॉप को 3 भागों में बांटा है :

1 . पहले 2 घंटे में शनि हमारे व्यवसाय व जिन्दगी के साथ कैसे जुड़ता है , यह एस्ट्रोनॉमी व भारतीय ज्योतिष के सम्मिलित ज्ञान द्वारा संक्षेप में बताया जाएगा।

2. इसके बाद अगले दो घंटे में शनि हमारे जीवन के अलावा विश्वव्यापी बदलाव कैसे लाता है , इसके ठोस, सजीव व रोचक उदाहरण आपके समक्ष प्रस्तुत किए जाएंगे। इसमें देश ,दुनिया , अर्थव्यवस्था , स्टाक मार्केट की तेजी मंदी , रूपए का अवमूल्यन , सरकारों व प्रबन्धन का उत्थान पतन के अलावा शनि की साढ़े साती व ढैय्या का वास्तविक अर्थ भी बताया जाएगा।

3 . इन 4 घंटों के प्रस्तुतीकरण के बाद आप शनि की कार्यशैली से अच्छे से परिचित हो जाएंगे , उसके बाद आख़िरी 3 घंटों में आपको शनि के हिसाब से व्यवसाय, नौकरी, परिवार व समाज में कैसे पेश आना चाहिए , इसका रहस्योदघाटन किया जाएगा और आपके मन में पड़े तमाम प्रश्नों का उत्तर भी दिया जाएगा । 
 

वर्कशॉप की समाप्ति के बाद आप ही नहीं , बल्कि आप से जुड़े व्यक्ति भी आप में हुए बदलाव को महसूस करेंगे ऐसा मेरा विश्वास है, क्योंकि यह वर्कशॉप आपकी सोच बदलने के लिए ही आरम्भ किया जा रहा है। वर्कशॉप से जुड़े अन्य डिटेल चित्र में दिए हैं।

वर्कशॉप की फीस इससे होने वाले लाभों की तुलना में नगण्य है। पैसे के बारे में अतिशय चिंतन व्यक्ति के ऊपर मंगल ग्रह के अत्यधिक प्रभाव को दर्शाता है , जो शनि से विपरीत लक्षणों वाला ग्रह है.अत: धन ( फीस) के बारे में ज्यादा सोचविचार करने वाले धनासक्त व्यक्ति इस वर्कशॉप का लाभ वास्तविक रूप में, बाद में भी नहीं उठा पाएंगे ऐसा मेरा विश्वास है , इसलिए ऐसे व्यक्ति कृपया आवेदन न करें।

वास्तविक रूप से जीवन में सकारात्मक बदलाव के इच्छुक, व्यवसाय व नौकरी से जुड़े व्यक्तियों के लिए ही वर्कशॉप का आयोजन किया जाना है ।
वर्कशॉप में भाग लेने के लिए इच्छुक व्यक्ति अपना रजिस्ट्रेशन हमें ycshukla67@gmail.com पर इमेल करें । प्रतिभागियों की उचित संख्या मिलने पर वर्कशॉप का समय व स्थान आपको सूचित किया जाएगा और उसी समय इमेल से रजिस्टर्ड लोगों को ई मेल से फीस बैंक खाते में जमा करने के बारे में सूचित किया जाएगा।

Saturday 17 August 2013

Invitation For Astrological Wisdom Workshop


अक्सर यह देखा गया है कि ज्योतिषी कई बार बिना कुंडली के भी सही भविष्यवाणी करते हैं। दरअसल इसमें शकुन या लक्षण शास्त्र की मदद ली जाती है।शकुन शास्त्र हमें अपने वातावरण में लगातार होने वाले परिवर्तनों के बारे में जागरूक करता है और उनके द्वारा भविष्य की घटनाओं के बारे में स्पष्ट संकेत देता है। कई बार यह लक्षण ज्योतिषी को न बताए जाने के कारण, कुंडली से सही भविष्यवाणी नहीं हो पाती है।

अत: इन लक्षणों की जानकारी यदि व्यक्ति को स्वयं हो तो वह स्वयं भी विश्वसनीय ढंग से संकट के समय सही निर्णय ले सकता है। शकुन शास्त्र मोटे तौर पर फर्स्ट ऐड के तौर पर कार्य करता है और जिस तरह डाक्टर की अनुपस्थिति में फर्स्ट ऐड महत्वपूर्ण होती है , उसी तरह शकुन शास्त्र ज्योतिषी व कुंडली (डायग्नोस्टिक रिपोर्ट) के बिना भी आपको संकट के समय उचित निर्णय की तरफ ले जाता है।

व्यवसाय, धन के निवेश, स्वास्थ्य, परिवार आदि रोजमर्रा की जिन्दगी से जुड़े अनेक निर्णयों में शकुन लक्षणों के प्रयोग से व्यक्ति बिना तनाव के उचित निर्णय ले सकता है।

ज्योतिष के पिछले 15 वर्षों के प्रयोग में सही पाए गए ऐसे अनेक लक्षणों को मैंने अपने सहकर्मियों के साथ व्यक्तिगत रूप से कई बार साझा किया है। बहुत सारे मित्र अभी भी फोन पर इसके बारे में बात करते रहते हैं. मित्रों के सुझाव पर आगामी   रविवारों  को एक दिन की कार्यशाला का आयोजन लखनऊ  या  दिल्ली में किया जाना   है। इस कार्यशाला में ज्योतिषीय अनुभव पर आधारित उन गूढ़ रहस्यों के बारे में चर्चा की जाएगी ,जिनके प्रयोग के द्वारा आप अपनी निर्णय क्षमता में आशातीत वृद्धि कर सकते हैं।

6 घंटे के इस रविवारीय कार्यशाला में प्रमुख रूप से ज्योतिष की प्रामाणिकता , शकुन लक्षणों का ज्योतिषीय आधार व उनके आधुनिक जीवन में व्यवसाय व अन्य क्षेत्रों में प्रयोग की चर्चा की जाएगी। ध्यान रहे कि 6  घंटे में   मैं आपको ज्योतिष नहीं सिखाने जा रहा हूँ , बल्कि यह सेफ्टी या फर्स्ट ऐड जैसी ज्योतिष से जुडी चीज है ,जो सामान्य ज्ञान के तौर पर हर वयस्क को आनी चाहिए और हमारे दादा , परदादा आदि इसका ज्ञान रखते थे और इसे दैनिक कार्यों में प्रयोग करते थे.

इससे जुडी अन्य जानकारी चित्र में दी गयी है। ज्योतिष के बारे में जिन लोगों को कोई शंका न हो और जो ज्योतिष की वास्तविकता से भलीभांति अवगत हैं सिर्फ वही व्यक्ति इस कार्यशाला के लिए अपनी स्वीकृति मोबाइल नं 91-8604617656 पर या इमेल  ycshukla@ymail.com या ycshukla67@gmail.com पर भेज दें .

उचित संख्या में आवेदन प्राप्त होने केबाद आयोजन की तिथि ई मेल या फ़ोन से सूचित की जाएगी।

Thursday 15 August 2013

जी हाँ, मैं गंगा बोल रही हूँ...




आज 15 अगस्त के मौके पर सब जगह एक गाना सुनाई दे रहा था " हम लाए हैं तूफ़ान से किश्ती निकाल के , इस देश को रखना मेरे बच्चों संभाल के " . इस गाने को बचपन में सुनकर हमारी पीढ़ी बड़ी हुई है। सन 1947 में अगर यह देश एक छोटी किश्ती या नाव जैसा था तो आज हमारा देश किसी विशाल शिप के आकार तक पहुँच चुका है। लेकिन विशाल आकार को अस्तित्व में बनाए रखना तूफ़ान से कश्ती निकालने से बड़ा काम होता है. दो दिन पहले नेवी की पनडुब्बी अकस्मात विस्फोट होकर डूब जाना इसका उदाहरण है।

मैंने यह पाया कि पुरानी पीढी जहां अपनी छोटी सी किश्ती को भी संभाल के रखने की ताकीद और उम्मीद अपने बच्चों से रखती थी , वहीं आजकल की पीढ़ी अपने बच्चों से इतने बड़े जहाज को संभाल के रखने को एक बार भी नहीं कह रही है बल्कि खाओ ,पीओ और मौज उड़ाओ पर जोर दिया जा रहा है । कारण शायद यह है कि सभी लोगों ने विदेशों में अपने शरणस्थल ढूढ़ रखे हैं ,जहां वे भारत रूपी जहाज के किसी भी समय डूबने पर चले जाएंगे। पुरानी पीढ़ी को शायद यह सुविधा नहीं थी और इसलिए उन्हें भारत रूपी किश्ती की चिंता ज्यादा थी।

अब कुछ गिने चुने लोग ही चिंतित दिखाई देते हैं। कानपुर के कवि डाo सुरेश अवस्थी ने कानपुर में बहने वाली गंगा के ऊपर एक कविता कुछ वर्ष पहले लिखी थी " मैं गंगा बोल रही हूँ " जिसमें अंतिम पंक्तियों में गंगा द्वारा प्रतिशोध की धमकी है. 16 जून को उत्तराखंड की भयावह दुर्घटना के समय मुझे यह कविता बार बार याद आती रही और मुझे लगा कि गंगा ने वाकई कुछ प्रतिशोध ले लिया । नीचे यह कविता प्रस्तुत है।

कृपया इसे पढ़े और सोचें , क्या किसी नदी या तीर्थस्थल को हमारे पूजा पाठ की कोई आवश्यकता है जब हमारे दिल में इनके लिए असली सम्मान पूरी तरह गायब है ? व्यक्तिगत स्तर पर कम से कम हम तीर्थयात्रा और पूजापाठ से पैदा प्रदूषण तो कम कर ही सकते हैं नहीं तो हम लोग विरासत में नयी पीढी को लुप्त सरस्वती की तरह लुप्त गंगा देकर जाएंगे ।
 जी हाँ मैं गंगा बोल रही हूँ,
द्रवित चक्षुओं से अपने मन की गाँठे खोल रही हूँ।

मेरी खातिर कितने ही दुख तटवासी सहते हैं,
मैं गंगा जिसको आप सभी पतित पावनी कहते हैं।

मैं वह गंगा जल जिससे परलोक सुधर जाता है,
जिसके आचमन मात्र से अगला जन्म सँवर जाता है।

मेरे तट पर सदियों से कितने मेले लगते हैं,
अंतिम यात्रा में लोग हमारे जल से ही तो तरते हैं।

मेरे तट पर तुलसी-कबीर ने कालजयी ग्रंथ रचे।
मेरी धारा में बार बार उत्सव के कितने रंग सजे।

उद्भट योद्धा भीष्म पितामह मेरी लहरों पर लेटे थे,
मैं साक्षी महाभारत की जिसमें लड़े एक ही वंश के बेटे थे।

इस पर भी मैं करती लहरों के संग किल्लोल रही हूँ।
पर आज यहाँ मन की गाँठें,
भारी मन से खोल रहीं हूँ।

"गंगा तेरा पानी अमृत झर झर बहता जाये" कहा गया जगते सोते,
फिर राम बता तेरी गंगा कैसे मैली हुई पापियों के पाप धोते धोते

सच्चे मन से ग्लानि भरे आँसू जिसने वार दिये,
हमने कितने ऐसे ही सच्चे मन से तार दिये।

पर युग बदला, हवा बदली,
पूजा, पाठ, अर्चना, भजन, पंडा तक फसली नकली।

सिक्कों भरी तराजू पर बेशर्मी से झूल रहे।
पाप नहीं मुझमें अब तो कपड़े धोये जाते हैं,

तट पर कूड़े करकट के काँटे बोये जाते हैं।
कदम कदम पर बालू में मिल जाती दारू की बोतल,

मुझे नहीं लोग अब उसे कहते है गंगाजल।
मेरी छाती पर फेंकते लोग लावारिस लाशें पोलीथिन,
उनके बोझ उठा कर मैं दुबली होती जाती दिन पर दिन।
 
दंश उपेक्षा के मैं दिन दिन भर सहती हूँ,
लोग समझते हैं नई धार निकली जब मेरे आँसू बहते हैं।
जल में अपनी आखों के खारे आँसू घोल रही हूँ।
जी हाँ, मैं गंगा बोल रही हूँ।

शहरों में कंक्रीट का मकड़जाल जब से फैला,
कारखानों का अपशिष्ट मुझे करता रहता हरदम मैला।

कितने फटे पुराने कपड़े मेरे जल में समा गये,
कितने ही भक्त दीप आरती के मेरी छाती पर बुझा गये।
 
पहले फूलों से मेरी पूजा की फिर सड़ने को जल में छोड़ गये,
चरण छुए, प्रसाद लिया फिर हुंडे पत्तल तोड़ गये।

लोक और परलोक का उन्हें नहीं सताता किंचित भय,
पास पड़ोस के रहने वालों ने बना लिए तट पर शौचालय,

घाटों के कंगूरों की ईंटों से बन गयी घरों की दीवारें,
अब बोलो इनमें से मैं किसको तारूँ, क्यों कर तारूँ?

भक्त कभी ताँबे का सिक्का मुझमें डाला करते थे,
इस कृत्य से पुण्य कमा पर्यावरण सँभाला करते थे।

ताँबे के तन में लगने से शुद्ध-विशुद्ध हो जाता जल,
मैं खुशी खुशी बहती, करती रहती कल कल कल।

अब वे नौकायन करते करते फेंकते बोतल कोल्डड्रिंक की,
पिज्जा- बर्गर की झूठन कागज पत्तों की थाली।

जैसे बच्चा अबोध कोई माँ की गोद में शौच करे,
मैं रही देखती हरदम ही ऐसे ही कुछ भाव भरे।

पर अब तो हद पार हुई मुझसे कुछ कहा नहीं जाता।
मैं गंगा हूँ कूड़ा दान नहीं, मुझमें यह सब मत झोंको,

यदि शर्म ज़रा भी बाकी हो अत्याचार तुरंत रोको।
अपनी अर्थी अपनी बाहों में समझो अब मैं तोल रही हूँ।
मन की गाँठें भारी मन से अब मैं खोल रही हूँ।

मेरे तट पर कितने ही होते रहे खनन,
बालू की परतें खोली जातीं, मैं दुख झेलती मन ही मन।

दिन भर छाती पर घर्र घर्र करते भारी भारी ट्रक के पहिए,
ऐसे उत्पीड़न को लेकर बोलो क्या कहिए।

माफिया कभी चलवा देते ठाँय ठाँय करती गोली,
जिसकी जीत हुई समझो भर जाती उसकी ही झोली।
 
ऐसे झगड़ों में जाने कितनों का मुझ पर खून बहा,
मैंने यह दंश रोते रोते कितनी बार सहा।

कुछ लोग सबेरे से ही बैठें जल में डाले काँटा,
जलचर को फँसा फँसा, मेरे मन पर मारें चाँटा।

मैं तट छोड़ूँ तो बदनामी, वहीं रहूँ तो घुटन सहूँ,
कोई मुझे बताये तो कहाँ जाऊँ और कहाँ रहूँ?

तन पर चोटें ही चोटें हैं उनको आज टटोल रही हूँ,
मन की गाँठें भारी मन से सरे आम मैं खोल रही हूँ
जी हाँ, मैं गंगा बोल रही हूँ।

सुनते सुनते कान पके कोई रुकावट कोई पंगा,
अब होगी अब होगी निर्मल अविरल गंगा।

इसकी खातिर जाने कितनी योजनाएँ बनीं,
मेरे तट पर दीप जले, लोगों की मुट्ठियाँ तनीं।

मेरी लहरों में समा गया बजट कई करोड़ों का,
पर नहीं काम तमाम हुआ मेरे पथ के रोड़ों का।
 
मेरे नाम बार बार भ्रष्टाचार की हवा चली,
भावुक भक्त बोलते रहे जय जय गंगा गली गली।

मुझको निर्मल करते करते खुद तो मालामाल हुए,
मुझको अविरल करते करते कितने ही लोग निहाल हुए।

जनता जागे आये आगे तब तो कोई बात बने,
मेरी खातिर अब कोई भ्रष्ट लहू से हाथ सने।

वरना मैं रूपरंग अपना तुरत-फुरत बदल लूँगी।
भागीरथ को बुलवा कर वापस गोमुख को चल दूँगी।
कितनी कितनी चोट सही फिर भी मैं अनमोल रही हूँ।
मन की गाठें, भारी मन से सरेआम मैं खोल रही हूँ।
जी हाँ, मैं गंगा बोल रही हूँ।
( कानपुर के कवि सुरेश अवस्थी द्वारा  रचित कविता )