हाथों में हथियार संभालो
आज अहिंसा नहीं जवानों ,
हाथों में हथियार संभालो
लुटता देश और तुम चुप हो
खुद अपनी पतवार संभालो.
रिरियाते - मिमियाते से स्वर, और याचना की मुद्राएँ ,
दैन्य, दासता , जाति - धर्म की , ये ओछी-थोथी सीमाएँ,
तोड़ो, छोड़ो झूठे बंधन , सबल बनो , अधिकार संभालो
लुटता देश और तुम चुप हो , खुद अपनी पतवार संभालो.
दाता, दीन- हीन फिरते हैं,याचक हैं महलों के वासी ,
मूर्खराज का वंदन करती,प्रतिभा बन चरणों की दासी ,
आगे और अनीति नहीं अब , विषपायी तलवार संभालो
लुटता देश और तुम चुप हो , खुद अपनी पतवार संभालो
लुटता देश और तुम चुप हो , खुद अपनी पतवार संभालो
कन्धों पर चढ़कर औरों के , पार करो मत गहरे जल को
जीवन की गंभीर भंवर में , कंधे साथ न देंगे कल को
बनो सफल तैराक स्वयं , औरों को भी उस पार निकालो
लुटता देश और तुम चुप हो , खुद अपनी पतवार संभालो.